Shraddh aur Tarpan ka Scientific Side: श्राद्ध तर्पण केवल आस्था नहीं, बल्कि प्रकृति संरक्षण और सामाजिक संतुलन से जुड़ा एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। जानिए कैसे पितरों को अर्पित जल-तर्पण, पीपल-बरगद और कौवों की जीवनचक्र से जुड़ा है।
Shraddh aur Tarpan ka Scientific Side: श्राद्ध तर्पण – आस्था और विज्ञान का संगम
कहते हैं, जब इंसान किसी चीज़ को समझ नहीं पाता तो उसे अंधविश्वास कह देता है। यही कहानी एक बार मेरे एक इंजीनियर मित्र के साथ हुई। वे किसी से सुनकर हंसते हुए कहने लगे –
“ये तर्पण-वर्पण सब पाखंड है जी!”
मैंने चुप रहकर उन्हें सुन लिया। फिर, उदाहरण से समझाने की कोशिश की।
Shraddh aur Tarpan ka Scientific Side: विज्ञान और आस्था का मेल
मैंने उनसे कहा – “आपका कहना सही है कि हर चीज़ को प्रत्यक्ष रूप से सिद्ध करना आसान नहीं। जैसे कि आपके पास न्यूक्लियर और न्यूट्रॉन्स के मॉडल हों, पर क्या आप उनसे ऊर्जा निकाल सकते हैं? नहीं न? इसके लिए उचित साधन और परिस्थितियां चाहिए।”
उसी तरह, तर्पण और श्राद्ध की प्रक्रिया भी एक ऊर्जा-परिवहन का माध्यम है, जिसे हमारी वर्तमान इंद्रियां नहीं माप सकतीं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि वह असत्य है।
Shraddh aur Tarpan ka Scientific Side: प्रकृति से जुड़ा श्राद्ध का गहन रहस्य
श्राद्ध को अक्सर लोग सिर्फ पितरों की स्मृति से जोड़ते हैं, लेकिन वास्तव में यह परंपरा हमारे जीवन-पर्यावरण, जीव-जंतु और वृक्षों से सीधा जुड़ी हुई है। ऋषि-मुनियों ने इसे केवल आध्यात्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी गढ़ा था।
1️⃣ पीपल और बरगद का अनोखा रहस्य
• बीज प्रक्रिया:
पीपल और बरगद के बीज साधारण परिस्थितियों में नहीं उगते। इन वृक्षों के फल जब कौए खाते हैं, तभी उनके पाचन तंत्र में बीज की प्राकृतिक प्रोसेसिंग होती है। फिर जब कौए बीट करते हैं, तो वहीं से नए पौधे जन्म लेते हैं।
• विशेष महत्व:
o पीपल वृक्ष – इसे “ऑक्सीजन ट्री” कहा जाता है क्योंकि यह 24 घंटे ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है।
o बरगद वृक्ष – यह विशालकाय छाया देने वाला वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर है और आयुर्वेद में इसका विशेष महत्व है।
यही कारण है कि श्राद्ध के दौरान कौओं को भोजन कराना केवल आस्था नहीं, बल्कि इन पेड़ों के प्राकृतिक जीवन चक्र को बनाए रखने का माध्यम भी है।
2️⃣ कौवों का जीवनचक्र और श्राद्ध की परंपरा
• भाद्रपद मास में कौए अंडे देते हैं और उनकी नई पीढ़ी जन्म लेती है।
• उस समय उनके बच्चों को अतिरिक्त भोजन और पोषण की ज़रूरत होती है।
• श्राद्ध के दौरान जब लोग छतों और आंगनों में अन्न रखते हैं, तो वास्तव में यह कौवों की नई पीढ़ी के पालन-पोषण का साधन बनता है।
यानी, श्राद्ध का अन्न केवल पितरों को अर्पित नहीं होता, बल्कि जैव विविधता (Biodiversity) को भी जीवित रखने में मदद करता है।
3️⃣ पर्यावरण और आध्यात्मिक ऊर्जा का मेल
श्राद्ध और तर्पण की क्रियाओं को केवल पाखंड कह देना उचित नहीं है।
• जब हम जल तर्पण करते हैं, तो वह जल केवल प्रतीकात्मक नहीं होता, बल्कि प्रकृति को संतुलित करने की ऊर्जा भी देता है।
• जैसे कि न्यूक्लियर एनर्जी सिर्फ वैज्ञानिक प्रयोगशाला में ही प्रकट हो सकती है, वैसे ही तर्पण और श्राद्ध का प्रभाव भी आध्यात्मिक स्तर पर होता है, जिसे प्रत्यक्ष आंखों से देख पाना कठिन है।
4️⃣ श्राद्ध = आस्था + इकोलॉजिकल बैलेंस
• यह परंपरा पितरों की स्मृति,
• वृक्षों और पक्षियों के संरक्षण,
• तथा आने वाली पीढ़ियों के पोषण—
इन सबका संतुलन बनाए रखती है।
यही कारण है कि श्राद्ध केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं बल्कि प्रकृति रक्षा का एक अनिवार्य साधन है।
Shraddh aur Tarpan ka Scientific Side: ऋषियों का दूरदृष्टि ज्ञान
आज से हजारों साल पहले हमारे ऋषि-मुनियों को ये बातें पता थीं –
धरती गोल है।
सौरमंडल में नौ ग्रह हैं।
किस पेड़-पौधे या औषधि का क्या उपयोग है।
यह ज्ञान केवल किताबों तक सीमित नहीं था बल्कि जीवनशैली का हिस्सा था।
निष्कर्ष
श्राद्ध और तर्पण को अंधविश्वास कह देना आसान है, लेकिन अगर हम इसे समझें तो पाएंगे कि इसमें आस्था के साथ गहरा वैज्ञानिक आधार भी छिपा है।
यह न सिर्फ हमारे पूर्वजों से जुड़ने का तरीका है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकृति और संसाधनों के संरक्षण का माध्यम भी है।
इसीलिए सनातन धर्म की परंपराएं आज भी प्रासंगिक हैं और समाज को जीवन जीने की सही दिशा देती हैं।
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