फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष चतुर्थी को द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। संकष्टी का अर्थ है संकट से मुक्ति मिलना। संकष्टी चतुर्थी को संकटहर चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश के द्विजप्रिय स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त अक्सर मोदक जैसे विशेष प्रसाद जो भगवान गणेश का पसंदीदा प्रसाद है घर पर ही बनाते हैं और गणेश जी को भोग लगाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन विघ्न विनाशक श्री गणेश जी की पूजा-अर्चना करने से जीवन में आने वाली हर प्रकार की कस्ट-बाधाओं से मुक्ति मिलती है। बहुत से लोग अपने जीवन में सुख समृद्धि के लिए चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का कठिन व्रत भी रखते हैं। इस व्रत में फलों तथा भूमि के भीतर उगने वाले जड़ों अथवा वनस्पतियों का ही सेवन किया जाता है, अतः साबूदाना खिचड़ी आलू तथा मूँगफली आदि को इस व्रत में उपयुक्त आहार माना जाता है।
चतुर्थी तिथि आरंभ समय-
द्विजप्रिया संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं पूजा विधि:
- सबसे पहले सुबह स्नान आदि करके अपने आप को पवित्र कर लें।
- उसके बाद पूजा घर में गणेश जी की मूर्ति या फोटो आदि रखकर सभी पूजन सामग्री पास रख ले।
- उसके बाद गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत पालन का संकल्प लें तथा व्रत की सफलता के लिए भगवान्
गणेश जी से प्रार्थना करें और गणेश जी की पूजा करें । - व्रत के दिन धर्म आचरण का पालन करें।
- सन्ध्याकाल में पुनः स्नान करके लाल रँग के वस्त्र धारण करें।
- उसके बाद पूर्ण विधि-विधान से गणेश जी की पूजा-अर्चना करें तथा उन्हें धूप, दीप एवं ऋतु अनुसार गन्ध,
पुष्प, फल आदि अर्पित करें अथवा यथासम्भव षोडशोपचार गणेश पूजन करें। - चन्द्रोदय होने के उपरान्त चन्द्रदेव का पूजन करें तथा उन्हें अर्घ्य एवं नैवेद्य आदि अर्पित करें।
- पूजन सम्पन्न होने के बाद भोजन ग्रहण करें।