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Reading: Lord Shiva The Destroyer: भगवान शिव, संहार के देवता या सृजन के आधार?
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ज्योतिष शास्त्र

Lord Shiva The Destroyer: भगवान शिव, संहार के देवता या सृजन के आधार?

Dabang Khabar
Last updated: March 15, 2025 3:36 PM
Dabang Khabar
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11 Min Read
Lord Shiva The Destroyer
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Lord Shiva The Destroyer: आइये जाने भगवान शिव के बारे में विस्तार से –

भगवान शिव को संहार का देवता कहा जाता है, लेकिन क्या वे केवल डिस्ट्रक्शन के सिंबल हैं? नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है। “शिव संहार से पहले क्रिएशन और बैलेंस के भी प्रतीक” हैं। शिव वो शक्ति हैं, जो बुराई को खत्म कर, अच्छाई का मार्ग प्रशस्त करती है। वे हमें जीवन के हर पहलू में संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देते हैं।

आइए विस्तार से जानते हैं भगवान शिव के विभिन्न रूपों, उनकी पूजा विधि, शिवलिंग की उत्पत्ति और उनके जीवन से मिलने वाली सीखों के बारे में।

🕉️ भगवान शिव कौन हैं?

भगवान शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिन्हें त्रिदेवों में स्थान प्राप्त है—ब्रह्मा (सृजनकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता) और शिव (संहारकर्ता)। उनका रूप अनोखा और रहस्यमय है—जटाओं से बहती गंगा, तीसरी आँख, कंठ में विष, गले में नाग, शरीर पर भस्म, और हाथ में त्रिशूल। वे योग और ध्यान के स्वामी हैं और आदियोगी कहलाते हैं।

भगवान शिव के जटाओं से बहती गंगा, तीसरी आँख, कंठ में विष, गले में नाग, शरीर पर भस्म, और हाथ में त्रिशूल धारण करने के पीछे भी एक कथा है आइये संक्षिप्त में जानते हैं –

🔱 जटाओं से बहती गंगा – भागीरथ की तपस्या का परिणाम

भगवान शिव की जटाओं से गंगा के प्रवाह की कथा राजा भागीरथ से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि राजा सगर के 60,000 पुत्रों की आत्मा को मुक्ति दिलाने के लिए, भागीरथ ने कठोर तपस्या की और माँ गंगा से धरती पर आने का आग्रह किया। लेकिन गंगा का वेग इतना प्रचंड था कि अगर वह सीधे धरती पर गिरती, तो समूची पृथ्वी का विनाश हो सकता था।

तब भागीरथ ने भगवान शिव की उपासना की और उनसे गंगा को अपने जटाओं में रोकने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने अपनी जटाओं में गंगा को समाहित कर लिया और धीरे-धीरे उसे छोड़कर धरती तक पहुँचने का रास्ता बनाया। इसीलिए शिव को “गंगाधर” भी कहा जाता है।

➡️ शिक्षा: यह हमें सिखाता है कि अनियंत्रित शक्ति को संतुलन में लाना आवश्यक है। शक्ति का प्रयोग संयम और बुद्धिमत्ता से करना चाहिए।

तीसरी आँख – शिव के क्रोध का प्रतीक

भगवान शिव की तीसरी आँख का उल्लेख कई पौराणिक कथाओं में मिलता है। सबसे प्रसिद्ध कथा कामदेव से जुड़ी है।

जब माता पार्वती भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रही थीं, तब शिव ध्यान में लीन थे। देवताओं ने कामदेव को शिव जी का ध्यान भंग करने भेजा। कामदेव ने शिव पर प्रेम बाण चलाया, जिससे उनका ध्यान भंग हुआ और उन्होंने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आँख खोल दी। अग्नि की तीव्र ज्वाला से कामदेव भस्म हो गए।

कंठ में विष – समुद्र मंथन की अमर कथा

समुद्र मंथन के दौरान अमृत के साथ-साथ भयंकर विष “कालकूट” भी निकला, जिसकी विषाक्तता से संपूर्ण सृष्टि के नष्ट होने का खतरा था। तब सभी देवताओं और असुरों ने भगवान शिव से सहायता मांगी।

भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए वह विष अपने कंठ में धारण कर लिया और उसे निगलने के बजाय अपने गले में ही रोक लिया। इस विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए।

गले में नाग – जीवन-मृत्यु का प्रतीक

भगवान शिव के गले में वासुकि नाग सुशोभित रहता है। यह नाग शिव के निर्भय और प्राकृत स्वरूप को दर्शाता है।

पुराणों के अनुसार, नाग संसार के भय और मृत्यु का प्रतीक हैं, और शिव के गले में विराजमान होने का अर्थ है कि वे मृत्यु और भय पर विजय प्राप्त कर चुके हैं। शिव सृष्टि के संहारकर्ता होने के बावजूद जीवन और मृत्यु से परे हैं।

शरीर पर भस्म – मृत्यु का सामना करने की सीख

कुछ कथाओं के अनुसार, जब माता सती ने आत्मदाह किया, तो उनका शरीर जलकर भस्म हो गया। इस अवस्था में भगवान शिव ने उनकी भस्म को अपने शरीर पर लगाया और श्मशान में जाकर ध्यान में लीन हो गए। लेकिन प्रमुख ग्रंथों में इसका प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं मिलता। फिर भी, यह विचार शिव के त्याग, प्रेम, वैराग्य और मृत्यु के सत्य को स्वीकार करने का प्रतीक हो सकता है। शिव तांडव का उल्लेख भी माता सती के भस्म होने के बाद शिव के क्रोध रूप में हुआ। इसके बारे में विस्तार से अगले लेख में जानेंगे।

भगवान शिव का अपने शरीर पर भस्म (राख) धारण करने का इसका आध्यात्मिक अर्थ यह है कि हर चीज़ नश्वर है, अंततः सब कुछ मिट्टी में मिल जाएगा। शिव का भस्म रमाना यह दर्शाता है कि मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इसे जीवन का सत्य मानकर स्वीकार करना चाहिए।

🔱 हाथ में त्रिशूल – त्रिगुणों पर नियंत्रण

भगवान शिव के हाथ में त्रिशूल है, जो तीन गुणों – सत्त्व, रजस और तमस का प्रतीक है।

त्रिशूल का अर्थ है कि शिव ने इन तीनों गुणों पर पूर्ण नियंत्रण प्राप्त कर लिया है। इसके अलावा, यह भौतिक, आध्यात्मिक और दैवीय शक्तियों का संतुलन बनाए रखने का प्रतीक भी है।

भगवान शिव केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक दर्शन हैं। उनका हर प्रतीक गहरा अर्थ रखता है और हमें जीवन की महत्वपूर्ण एजुकेशन देता है।

गंगा की जटाओं में प्रवाह – शक्ति का संतुलित उपयोग।

तीसरी आँख – विवेक और आत्मज्ञान।

कंठ में विष – बलिदान और सहनशीलता।

गले में नाग – मृत्यु पर विजय।

शरीर पर भस्म – मोह-माया से मुक्ति।

हाथ में त्रिशूल – जीवन के तीन गुणों पर नियंत्रण।

भगवान शिव हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में हर परिस्थिति का सामना धैर्य, संतुलन और ज्ञान से किया जाए।

🚩 ” हर-हर महादेव! “

🔥 शिव को “संहारकर्ता” क्यों कहा जाता है?

शिव का संहार सिर्फ विनाश नहीं, बल्कि नए निर्माण की तैयारी भी है। वे उस नकारात्मकता को खत्म करते हैं जो सृष्टि के संतुलन को बिगाड़ती है। उनका तांडव नृत्य नाश का प्रतीक नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत का संकेत है। वे हमें सिखाते हैं कि पुराने और बुरे विचारों का अंत ही नए और सकारात्मक जीवन की शुरुआत होती है।

🙏 भगवान शिव से मिलने वाली सीखें :

संयम और धैर्य: शिव अपने ध्यान और तपस्या में लीन रहते हैं, जो हमें सिखाता है कि धैर्य और आत्मसंयम से हर समस्या का समाधान किया जा सकता है।

सादगी में शक्ति: शिव भस्म लपेटे, बाघंबर पहने रहते हैं, जिससे पता चलता है कि बाहरी वैभव से अधिक आंतरिक शांति महत्वपूर्ण है।

क्रोध पर नियंत्रण: उनकी तीसरी आँख तभी खुलती है जब धैर्य की सीमा पार हो जाती है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपने गुस्से को नियंत्रित रखना चाहिए और केवल आवश्यक होने पर ही उसका प्रयोग करना चाहिए।

भक्ति और प्रेम: माता पार्वती से उनका प्रेम अमर है, जिससे हमें निष्ठा और समर्पण की सीख मिलती है।

कैलाश पर विराजमान महादेव : भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत है, जो आत्मज्ञान और शांति का प्रतीक भी है। कैलाश हमें यह सिखाता है कि सच्ची शांति और आध्यात्मिक ऊँचाई प्राप्त करने के लिए हमें अपने भीतर झांकना होगा।

भगवान शिव का दिन (Which Day is Dedicated to Lord Shiva?)

हिंदू धर्म में सोमवार (Monday) को भगवान शिव का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन व्रत और पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

🔸 सोमवार व्रत के लाभ: मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। स्वास्थ्य, समृद्धि और सुख-शांति बनी रहती है।

श्रावण (सावन) मास में शिव भक्ति का विशेष महत्व होता है। इस पूरे महीने में भक्त हर सोमवार को व्रत रखते हैं और भगवान शिव की विशेष पूजा करते हैं।

भगवान शिव की पूजा विधि (Shiv Puja Vidhi)

भगवान शिव की पूजा सरल और प्रभावशाली मानी जाती है। वे भक्तों की भक्ति से जल्दी प्रसन्न होते हैं, इसीलिए उन्हें ‘भोलेनाथ’ कहा जाता है।

🔹 पूजा का समय: प्रातःकाल और संध्याकाल शिव पूजा के लिए सबसे शुभ माने जाते हैं।

🔹 आवश्यक सामग्री: बेलपत्र, गंगाजल, दूध, दही, शहद, भस्म, चावल, धूप, दीप, और भांग।

🔹 पूजा विधि: सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान शिव का ध्यान करें और मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें। शिवलिंग पर गंगाजल, दूध, दही, शहद और भस्म अर्पित करें। बेलपत्र और धतूरा चढ़ाएं, क्योंकि ये भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। धूप और दीप जलाकर शिव चालीसा या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।

अंत में आरती करें और प्रसाद बांटें।

🚨 विशेष ध्यान दें: शिव पूजा में तुलसी के पत्ते और केतकी का फूल नहीं चढ़ाया जाता क्योंकि ये भगवान शिव को अप्रिय हैं।

इसप्रकार भगवान शिव की पूजा और भक्ति करके सभी मनोकामनाएं पूरी की जा सकती हैं।

शिव जी की महिमा और उनसे सम्बंधित लेख पढ़ने के लिए, पढ़ते रहें – “दबंग खबर, dabangkhabar.com पर”।

Lord Shiva The Destroyer

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