Ladki ke Pita:
बारात रात खाली लौट चुकी थी , शादी के मेहमान भी सारे लौट चुके थे। इस बार शादी दहेज के लिए नहीं लड़की के सावले पन की वजह से टूटी थी। लड़की का बाप सबके पैरों मे गिरा था। आखिर बाप था बेटी का और बेटे से ज्यादा बेटी सम्मानित करती है बाप को और एक बाप हमेशा अपनी बेटी के कारण सम्मानित होना चाहता है।सगाई के दिन तक लड़का को आरती (लड़की का नाम) पसंद थी। मगर शादी के वक्त उसने लड़की को उसके सावलेपन के कारण छोड़ दिया। आरती के पिता खाली कुर्सीयो के बिच बैठकर बहुत देर तक रोते रहे।
घर मे बस दो ही लोग , बाप और बेटी आरती। जब आरती पांच साल की थी तब माँ चल बसी थी। अचानक उन्हें ख्याल आया अपनी बेटी आरती का, कहीं बारात लौटने की वजह से मेरी बेटी…? दौड़कर जाते हैं आरती के कमरे की ओर.. मगर ये क्या.? आरती दो कप चाय लेकर मुस्कुराती हुई आ रही थी अपने पापा की ओर। दुल्हन के जोड़े की जगह घर मे काम करते पहनने वाले कपड़े थे शरीर पर। पापा हैरान उसको इस हालत मे देखकर , गम की जगह मुस्कुराहट , निराशा की जगह खुशी , कुछ समझ पाते इससे पहले आरती बोल पडी।
बाबा चलो जल्दी से चाय पिओ और फटाफट ये किराये की पांडाल और कुर्सीया , बर्तन सब पहुँचा देते हैं जिनका है , वरना बेकार मे किराया बढ़ता रहेगा। इधर पापा के लिए आरती पहेली बन चुकी थी। बस पापा तो अपनी बेटी को खुश देखना चाहते थे। वजह कोई भी हो। इसलिए वजह नही पूछा उन्होंने। फिर वह बेटी से बोलते हैं :- बेटी.. चल गाँव वापस जाते है , यहां शहर मे अब दम घुटता है। आरती मान जाती है। फिर कुछ दिनों बाद वह शहर छोड़ गाँव वापस आ जाते हैं।
गाँव मे वह मछली पकड़ने का काम करते थे मगर आरती की मां के गुजर जाने के बाद उनकी यादों से पिछा छुड़ाने के लिए शहर जाकर मजदूरी का काम करते थे। अब फिर उन्होंने वही पेशा अपनाया था। आरती भी पहले की तरह अपने बाबा के साथ मछली मारने जाने लगी। इधर उस लड़के का एक खूबसूरत गोरी लड़की से शादी तय हो चुका थी , लड़का बेहद खुश था। मगर उसे भी शौक था कि दोस्तों के साथ शहर से दूर घूमने का।
एक दिन ऐसे ही घूमने निकले थे और नदी किनारे मजाक मस्ती कर रहे थे दोस्तो के साथ कि अचानक पैर फिसल कर गहरे पानी मे लड़का गिर जाता है। नदी का बहाव तेज भी था और गहरा भी। नदी लड़के को बहा ले जाती है। उसके दोस्त बचाने की बहुत कोशिश करते हैं , मगर सब व्यर्थ। इधर एक सुबह आरती के पापा अकेले नदी जाते हैं तो वहां रात को बिछाये उनके जाल में लड़का फँसा मिलता है ।
वह तुरंत अंधेरे मे ही लड़के को अपने कंधे पे उठाकर अपने घर लाते हैं। जंहा बहुत मसक्कत के बाद लड़के को होश आता है। मगर सामने आरती और उसके पापा को देखकर बहुत शर्मा जाता है और तुरंत यादश्त जाने की एक्टिंग करता है।
पापा :- बेटी… लड़के को कुछ पता नहीं , शायद अपनी यादस्त खो चुका है और इसे कुछ चोटे भी आई हैं। मैं इसको शहर पहुँचा देता हूँ।
आरती :- रहने दीजिए दो चार दिन पापा.! जब घाव भर जायेगी तो तब छोड़ देना।
पापा :- तू जानती है , ये कौन है.?
आरती मुस्कुराकर अपने बाबा से लिपटकर कहती है.. क्यों नहीं बाबा , जानती हूँ। मगर वह पुरानी हैं बातें जो बीत चुकी हैं। अब नया ये है कि इनके घाव का इलाज किया जाये। वैसे भी इन्हें अब सावलेपन से कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए क्योंकि ये अपनी यादस्त खो चुके हैं। ये हमारे घर आये घायल मेहमान हैं , इसलिए इन्हें पूरी तरह ठीक करना हमारा धर्म है।
मगर आरती के पापा ने मुस्कुराहट के बिच भी बेटी के पलकों पर कुछ नमी महसूस जरूर की थी। इधर लड़का सारी बाते सुन लेता है। वह बेहद हैरान था इस वक्त। लड़के का इलाज शुरू होता है। इधर हर समय लड़की लड़के की देखभाल करती है। आरती के ख्याल रखने के तरीके को देखकर लड़के को प्यार हो जाता है आरती से।हंसी मजाक तकरार होती रहती है दोनों में एक दिन जब लड़के का घाव भर जाता है तो लड़का आरती से कहता है :
मैं कौन हूँ , कहां से आया , मेरा नाम क्या है , मैं कुछ नहीं जानता मगर तुम्हारा अपनापन देखकर मेरा यहीं रहने को दिल करता है हमेशा के लिए।
आरती :- आप चिंता न करो , हमारे बाबा आपको कल शहर छोड़ देंगे और आपको गाड़ी की छत पर बिठाकर निचे लिख देंगे कि एक खूबसूरत नौजवान को माता पिता के घर का पता बताने वाले को एक लाख दिया जायेगा ।
लड़का :- मेरा मजाक उड़ा रही हो..?
आरती :- अरे नहीं नहीं , हमारी इतनी औकात कहां जो हम किसी का मजाक उडा़ सकें।
लड़का :- तुमने कभी किसी से प्यार किया है आरती.?
आरती :- नहीं , मगर किसी एक को मैंने अपनी दुनिया मानी थी मगर उसने मुझे अपना बनाने से इंकार कर दिया।
लड़का :- जरूर वह कोई पागल ही होगा जिसने तुम्हें ठुकराने की गलती की है।
आरती :- नहीं नहीं , वह एक समझदार लड़का था। पागल होता तो मुझे जरूर अपना बनाता।
लड़का :- यदि वह लड़का फिर से अपनी गलती को स्वीकार करके तुम्हें अपनाने आ जाये तो क्या उसे माफ करके उसके साथ शादी करोगी..?
आरती के पापा दुसरे कमरे से दोनों की बातें सुन रहे थे।
आरती :- गलती उनकी कुछ भी नहीं थी तो मैं कैसे बिना गलती के उन्हें माफ कर दूँ। गलती तो मेरी थी। लड़का खुश होकर कहता है कि इसका मतलब तुम उस लड़के से शादी कर सकती हो.?
आरती :- बिलकुल नहीं। अब दोबारा उनसे शादी के बारे मे सोच भी नहीं सकती।
लड़का :- मगर क्यों..? अब फिर क्या उलझन है..?
आरती कुछ देर खामोश रहती है और खिड़की की ओर देखने लगती है। शायद कुछ कहने से पहले खुद को सम्भालना चाहती थी। शायद पलकों पे दर्द पिघल रहा था।
अंदर उसके पापा भी हैरान चकित होकर वजह सुनने को बेताब हैं। लड़का पास जाकर आरती को अपनी तरफ करता है मगर आरती की पलकों पर आसुंओं का सैलाब देखकर कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती। आरती अपनी पलको को उँगली से साफ करते हुए कहती है :- उस दिन मैंने अपने बाबा को उस इंसान के पैरों पर सर रखकर मेरे लिए गिडगिडाकर रोते हुये देखा था , मेरे उस बाप को जो मेरा अभीमान , मेरा घमंड है। पता है उस दिन मैं अकेले मे रोयी थी। बारात लौट चुकी थी।
लोग आस्ते आस्ते जा चुके थे , मगर एक शख्स ऐसा भी था जो अपनी बेटी के लिए सबके पैर पकड़ पकड़ कर थक सा गया था। वह सिर्फ अकेला बैठा था अपनी तक्दीर पर रोने के लिए। खिड़की से बहुत देर तक मेरे उस बेबस बाबा को नमी आखो से देखती रही जो मेरा सबकुछ था।
मैंने अचानक अपनी पलकों को पोंछा फिर ठीक से धोया और दुल्हन के वस्त्र खोलकर दूसरी पहन ली , फिर चाय बनाई। कितना मुश्किल था उस वक्त खुद के आसुंओ को रोकना। क्योंकि उस दिन मेरी जिंदगी लौटी थी मुझे एक लाश समझकर। जरूरी था मुस्कुराना , क्योंकि सामने वह शख्स था जो मेरे आँसू देखता तो शायद जी नहीं पाता।
मुझे मुस्कुराना था अपने बाबा के लिए , क्योंकि मेरी खूबसूरत राजगद्दी के मेरे बाबा , मेरे राजा हैं और मैं उनकी राजकुमारी। मुझे सावली मानकर एक शख्स ने ठुकरा दिया मगर मेरे बाबा मेरे लिए वह शख्स थे जब मेरे पाँच साल की उम्र मां गुजर गयी तब भी इन्होंने दूसरी शादी नहीं की । कहीं उनकी राजकुमारी को कोई दूसरी औरत आकर न सताये।
अंदर आरती के पापा का बुरा हाल था। पहली बार वह अपनी बेटी के मुँह से वह दर्द की कहानी सुन रहे थे , जिस दर्द को बाप की खातिर झूठे मुस्कान की चादर से बेटी ने ढक के रखा था। मर्द था वह बाप मगर बेटी के दर्द ने मोम की तरह पिघला के रख दिया था। इधर आरती रोते रोते आगे कहती है
हर बेटी के अच्छे बाप की जिंदगी और मौत बेटी के पलकों पर छुपी होती है। जंहा बेटी मुस्कुराई वहाँ एक पिता को दोगुनी जिंदगी मिलती है और जंहा बेटी रोयी बाप एक तरह से मर ही जाता है। मैं सावली थी उनके लिए मगर मै अपने पापा के लिए एक परी, एक राजकुमारी हूँ। उन्होंने बारात लौटी दी मेरी दहलीज से , मगर मेरे पापा ने उस शहर को ठोकर मार दी जहाँ उनकी राजकुमारी का अपमान हुआ था।
अब आप ही सोचो , कैसे कर लूँ शादी दोबारा उस शख्स से जिसने मेरे खुदा को अपने कदमों मे झुकाया हो। माना सावली हूँ मैं मगर हूँ तो एक बेटी ही। लड़का पलके झूकाये सुनता रहा। सर उठाया तो वो भी रो रहा था एक सावली लड़की के दर्द को सुनकर। लड़के को कुछ नहीं सुझा तो अपने आप एक हाथ उठाकर आरती को सल्यूट कर बैठा और धीमे से कहा.. क्या मै तुम्हें एक बार गले से लगा सकता हूँ..? आरती कुछ नहीं कहती। मगर लड़का तुरंत आरती से गले लगकर बस इतना ही कहता है… भगवान करे मुझे एक सावली लड़की मिले। अरदास है मेरी कि मुझे तुम ही मिलो। फिर आरती को उसी हालत में छोड़ कर आरती के पिता के कमरे मे आता है। जंहा आरती के पिता बैठकर रो रहे थे।
लड़के को देखकर अचानक खड़े हो जाते हैं। मगर तब तब लड़का उनके पैरों मे गिरकर माफी माँगता है और खड़े होकर कहता है :- मेरी याददास्त बिलकुल ठीक है मगर आप ये बात आरती को मत बताना वरना ये गुनाह पहले गुनाह से बड़ा होगा , शायद मेरी याददास्त उस वक्त गयी थी जब मैंने आरती को ठुकराया था और आपको झुकाया था।
मैं कोई सफाई नहीं दूंगा अपनी बेगुनाही की। हाँ मैंने गुनाह किया है मगर कोई मुझे सजा तो दे… कहते कहते लड़का रोने लगता है। मुझे मेरे गुनाहो की सजा के रूप मे आरती दे दिजीए। मुझे आपकी परी चाहिए , आपकी राजकुमारी चाहिए। मैं इंतजार करूँगा कि कब मेरे गुनाहो की पैरवी होती है। उस दिन जज भी आरती होगी और वकील भी आरती। सजा दे या रिहा करे… मैं बस उसका ही हूँ। इतना कहकर लड़का कहता है … बाबा अब आज्ञा दीजिए हमें। हम निकलते हैं , एक दिन और यंहाँ रहा तो मैं जी नहीं सकूँगा आरती का गुनाहगार बनके।
लड़का निकल जाता है। आरती दूर तक जाते देखती रहती है अपनी जिंदगी को। मगर पलकों मे एक उम्मीद की नमी थी , उसके वापस आने की। क्योंकि आरती , लड़के और अपने बाबा की बात सुन चुकी थी।
बाबा :- – आरती तू एक बार और सोच ले क्योंकि वह पश्चाताप की आग मे जल रहा है। तेरी खुशी किसमे है पता नहीं मगर मेरी खुशी तो तू है और तेरे बाबा का दिल कहता है कि चल फिर तुझे सजा दू दुल्हन के रूप मे उसी लड़के के साथ जिसने तूझे सावली कहा था।
आरती :- बाबा.. हम तो बस आपको खुश देखना चाहते हैं , लोग जितना भी नफरत क्यों न करे हमसे। जीतना भी सतायेगा क्यों न , हमें कोई फर्क नहीं पड़ता मगर जिस दिन आपको दुखी देखा मैंने उस दिन टूट जाउगी मै।
इधर आरती बाप की खुशी मे तैयार हो जाती है। उधर लड़का अपने मा बाप को लाता है और जिद करता है कि शादी शहर में हो , उसी घर मे हो जहाँ से मैंने मेरी सावली को ठुकराया था।